कविता:तुम्हारा रूप
1.
सफेद कागज पर
तुम्हारा रूप
यूं खिलता है
जैसे
काली बिंदी
माथे पर किसी
मनीषा के
2.
तुम्हारे चेहरे पर
रंग रोपन
कम हो तो
बोलती हो
अर्थ खोलती हो
ज्यादा
3.
तुम देखने की नहीं
दिखाने के काम आती हो
अंतर्मन में समाने की कोशिश
तुम्हारी अहर्निश
4.
बहुत संकोची हो तुम
खुलती ही नहीं तुरंत
कई कई बार बजाने पर
सांकल, हिलती डुलती हो
07.11.2020
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