सोमवार, 6 जून 2016

मैं गलत होना चाहूंगा !

मैं गलत होना चाहूंगा !
कभी प्रेम
बेहोशी में किया जाता था
नशे में सराबोर
सहराओ में भागते
जंगलों में भटकते
समुद्र में समाते
चैन और नींद से
दुश्मनी निभाते
तारों को गिनते
और बिस्तर पर छटपटाते
कभी पागलपन की हद तक जाते
इन दिनों होशो हवास में
बही खाते के साथ
इसकी उसकी तरह

कहीं मैं गलत तो नहीं
प्रेम के हक में
मैं गलत होना चाहूंगा.

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