सोमवार, 12 दिसंबर 2022

नई बात

एक मुखड़ा

दो तीन अंतरे

काफी होते थे कभी

दास्ताँ सुनान को

फलसफा जिंदगी के

दोहराने को। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें