मंगलवार, 11 सितंबर 2012

गेहूं के दाने

गेहूं के दाने

कितने कतरे खून के सूखे
कितना बहा पसीना
कितनों के घर कर्ज में डूबे
कितनों को परिजन पड़े गंवाने

वे क्या जाने
वे क्या जाने

...

कुछ बेदर्दी ले गए औने-पौने में
भरने अपने खजाने
कुछ ले गए गोदामों उन्हें सड़ाने

मेत्री-अफसर और क्या करते
देते रहे सफाई
बनाते रहे बहाने

इस मंजर को देख
तड़पे दिल उनका
जिनको पड़े उगाने
गेहूं के दाने।

शैलेंद्र

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