बहुत
दिनों बाद चार कहानियों से गुजरना हुआ । वागर्थ के अगस्त अंक में छपी
कहानियों से । शुरुआत हुई महावीर राजी की कहानी "ठाकुर का नया कुआँ " से ।
फिर क्रमश: इश्तियाक सईद की " नई बात ", उर्मिला जैन की "नन्हें मन का आवास
" और कमलेश की "अघोरी " पढ़ी । ये सभी कथाकार अपनी कहानियाँ पढ़ा ले गये ।
इस लिहाज से कहानियाँ कामयाब रहीं । राजी अपनी कहानी में बाल पात्रों के
जरिये लगातार विद्रोह करा रहे हैं । अपने समय के विद्रूप को उजागर करते
हुये । अब बच्ची महरी से बर्तन , कपड़े , घर तो साफ कराये
जा सकते हैं , पर उसे कमरों से लगे टायलेट का इस्तेमाल नहीं करने देंगी
पढ़ी लिखी सभ्य आधुनिक मालकिन । नौकर किस्म के जंतुओं के लिये टायलेट भी अलग
। लेकिन महावीर जी हीरामणि से बोमी के बहाने सफल विद्रोह करा ही देते हैं ।
साथ ही मध्यमवर्गीय आडम्बर का पोस्टमार्टम भी !
सईद जी कहानी में सच माने में "नई बात "का अनुकरणीय संदेश है । गरीब जुम्मन मियां की बिटिया का निकाह होना तय है , पर वह गांव के लोगों को दावत देने में सक्षम नहीं है। वह चाहता है कि गांववाले बाराती के स्वागत में मदद करें । लेकिन गांव के चौधरी को यह मंजूर नहीं । वह कर्ज देने का प्रस्ताव , खेत बेचने की राय तो देता है , पर भात यानी दावत खाने से पीछे नहीं हटता । इस बीच एक हाजी की सलाह पर समधी अब्दुल वाहिद महज छह बारातियों के साथ बेटे का ब्याह करा ले जाते हैं । और चौधरी समेत गावं वालों को अपने यहां भोज का दावत भी ।
उर्मिला जैन रिश्ते से बंधे भारतीय समाज की खूबसूरती और इंग्लैंड के मशीनी व लगभग एकाकीपन की कहानी एक बाल पात्र के जरिये पेश करती हैं । अच्छी अनुवादिका के रूप में पहचानी जाने वाली उर्मिला जी की यह कहानी भी बांधे रखती है ।
कमलेश मजे हुये कहानीकार है । बेमेल विवाह या यूं कह लें कि बगैर लड़के के बारे में पूरी जानकारी हासिल किये शादी कर दिये जाने की विडम्बना को "अघोरी " के मार्फ़त पेश करते हैं । नपुंसक आदमी अपने सच को छिपाने के लिये अघोरी बन जाता है । पत्नी एक दिन घर छोड़ कर चली जाती है । कोलकाता में उससे एक दूसरा व्यक्ति शादी कर उसे छोड़ भी देता है । उन्हीं की बेटी , अकेले यात्रा कर एक सुनसान रेलवे स्टेशन देर रात पहुँचती है एक किताब लिखने के बहाने अपनी मां के पहले पति से मिलने । बक्सर के पास । वहीं अपने प्रेमी-मित्र की मदद से । वह किसी तरह गुसैल , बदजुबान अघोरी को वह अलबम दिखाती है , जिसमें उसकी मां की तस्वीरें हैं । और वह अपने अघोरी बन जाने के रहस्य से परदा उठाता है । लगभग फिल्मी अंदाज में ।
सईद जी कहानी में सच माने में "नई बात "का अनुकरणीय संदेश है । गरीब जुम्मन मियां की बिटिया का निकाह होना तय है , पर वह गांव के लोगों को दावत देने में सक्षम नहीं है। वह चाहता है कि गांववाले बाराती के स्वागत में मदद करें । लेकिन गांव के चौधरी को यह मंजूर नहीं । वह कर्ज देने का प्रस्ताव , खेत बेचने की राय तो देता है , पर भात यानी दावत खाने से पीछे नहीं हटता । इस बीच एक हाजी की सलाह पर समधी अब्दुल वाहिद महज छह बारातियों के साथ बेटे का ब्याह करा ले जाते हैं । और चौधरी समेत गावं वालों को अपने यहां भोज का दावत भी ।
उर्मिला जैन रिश्ते से बंधे भारतीय समाज की खूबसूरती और इंग्लैंड के मशीनी व लगभग एकाकीपन की कहानी एक बाल पात्र के जरिये पेश करती हैं । अच्छी अनुवादिका के रूप में पहचानी जाने वाली उर्मिला जी की यह कहानी भी बांधे रखती है ।
कमलेश मजे हुये कहानीकार है । बेमेल विवाह या यूं कह लें कि बगैर लड़के के बारे में पूरी जानकारी हासिल किये शादी कर दिये जाने की विडम्बना को "अघोरी " के मार्फ़त पेश करते हैं । नपुंसक आदमी अपने सच को छिपाने के लिये अघोरी बन जाता है । पत्नी एक दिन घर छोड़ कर चली जाती है । कोलकाता में उससे एक दूसरा व्यक्ति शादी कर उसे छोड़ भी देता है । उन्हीं की बेटी , अकेले यात्रा कर एक सुनसान रेलवे स्टेशन देर रात पहुँचती है एक किताब लिखने के बहाने अपनी मां के पहले पति से मिलने । बक्सर के पास । वहीं अपने प्रेमी-मित्र की मदद से । वह किसी तरह गुसैल , बदजुबान अघोरी को वह अलबम दिखाती है , जिसमें उसकी मां की तस्वीरें हैं । और वह अपने अघोरी बन जाने के रहस्य से परदा उठाता है । लगभग फिल्मी अंदाज में ।
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