शनिवार, 8 जनवरी 2011

आईना


आईना आज हमको हकीकत दिखा गया,
पीछे न मुड के देख ये बता गया।

वो झूलती बाहें वो भागता सा मन,
याद आज हमको बचपन दिला गया।

हर चमकती चीज को सोना न समझ,
कोई उस पर पीतल का पानी चढा गया।

चेहरे के बदलते हुए भावों को तो देख,
आँखें भी धोखा देती हैं ये जता गया।

जिंदगी से भागने की कोशिश तू न कर,
कितनी है अनमोल ये कीमत बता गया।

पत्थर पर चोट करने से है शीशा ही टूटता,
आज हमारी हैसियत हमको बता गया।
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कवियत्री---पूनम
शैलेन्द्र द्वारा आपके साथ पर प्रकाशित।

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