सोमवार, 3 जनवरी 2011

रिवाज

अपने प्रिय  कवि कबीर को याद करते हुए आपके लिए पहली पोस्ट
..........................................................................................
रिवाज 
वे शब्द सुने जाने चाहिए 
कराहते हुए से
कलपते हुए से
विलापते हुए से शब्द
सुने जाने चाहिए
सुनी जानी चाहिए
 मद्धिम आवाज
बुदबुदाती सी आवाज
सुनी जानी चाहिए
चुप्पे की आवाज
तंत्र जो लोक का तंत्र है
गर सच माने मे  है
वह जन का तंत्र
सुनना चाहिए उसे
तरह- तरह  की आवाज
बहत धेर्य ,बहत ध्यान से
ख़त्म किया जाना चाहिए
महज और महज
शोर सुनने का रिवाज !

2 टिप्‍पणियां:

  1. शैलेन्द्र जी, आपने इतनी सशक्त और प्रभावशाली कविता के साथ हिन्दी के ब्लागजगत में पदार्पण किया है। आपका स्वागत और ब्लाग की सफ़लता के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. भाई शैलेन्द्र जी, विलम्ब से ही सही लेकिन आप आये तो सही। उम्मीद करता हूं कि पत्रकारिता एवं कविता के क्षेत्र में आपकी कलम में जो पैनापन और प्रभाव है वही धार और प्रभाव ब्लाग पर बरकरार रहेगी। हार्दिक शुभकामनायें। हेमन्त

    जवाब देंहटाएं