गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

तब मैं

मैं  धीमा 
सुस्त   ,गतिहीन 
निष्क्रिय इतना
जितना कि अजगर
गतिशील पंक्षी को ठूंसे रखता 
आलस्य की जेंब  में
बस बीच बीच में ही 
पुचकारता,टटोलता रहा उसे 
पर जब भी टटोलता 
हाथ में आ जाते उसके पंख
जो उड़ने को हो जाते बेताब 
मैं  उसके मुलायम स्पर्श को महसूस करता
और फिर ठूंस देता उसे
दूसरी जेंब में 
जो फटी होती अंदर से
इसकी खबर तब लगी 
जब सेमल कि फुनगी पर बैठ
चहचहाने लगी कविता 
मुझे अच्छा लगा 
और साथ ही तरस आया खुदपर
फिर अपनी साबुत जेब से 
उस पंक्षी को किया आजाद 
तब से  कुछ सुगबुगाहट सा 
महसूस   कर रहा  हूँ   !     

 

शनिवार, 8 जनवरी 2011

आईना


आईना आज हमको हकीकत दिखा गया,
पीछे न मुड के देख ये बता गया।

वो झूलती बाहें वो भागता सा मन,
याद आज हमको बचपन दिला गया।

हर चमकती चीज को सोना न समझ,
कोई उस पर पीतल का पानी चढा गया।

चेहरे के बदलते हुए भावों को तो देख,
आँखें भी धोखा देती हैं ये जता गया।

जिंदगी से भागने की कोशिश तू न कर,
कितनी है अनमोल ये कीमत बता गया।

पत्थर पर चोट करने से है शीशा ही टूटता,
आज हमारी हैसियत हमको बता गया।
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कवियत्री---पूनम
शैलेन्द्र द्वारा आपके साथ पर प्रकाशित।

सोमवार, 3 जनवरी 2011

रिवाज

अपने प्रिय  कवि कबीर को याद करते हुए आपके लिए पहली पोस्ट
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रिवाज 
वे शब्द सुने जाने चाहिए 
कराहते हुए से
कलपते हुए से
विलापते हुए से शब्द
सुने जाने चाहिए
सुनी जानी चाहिए
 मद्धिम आवाज
बुदबुदाती सी आवाज
सुनी जानी चाहिए
चुप्पे की आवाज
तंत्र जो लोक का तंत्र है
गर सच माने मे  है
वह जन का तंत्र
सुनना चाहिए उसे
तरह- तरह  की आवाज
बहत धेर्य ,बहत ध्यान से
ख़त्म किया जाना चाहिए
महज और महज
शोर सुनने का रिवाज !

रविवार, 2 जनवरी 2011

mai v aa gya blog ki dunia me

प्रिय दोस्तों,
आपसे संवाद करने देर से ही सही मै भी आ गया , सबसे पहले मेरी तरफ से आप सबको नए साल का  मुबारकबाद |
शुक्रिया....
आपका शैलेन्द्र....