खुद से ही करता हूं संवाद पूछता हूं खुद से ही बार-बार सवाल- चाहा जो दूसरों से खुद उसे कितना निभाया टूटता हूं कभी बहुत अंदर से कभी बिखर-बिखर जाता हूं बाहर नंग-धड़ंग प्रश्नों के सामने विवस्त्र हो जाता हूं।
चलो कवि बाजार
चलो कवि उठाओ झोला खाकर महंगाई की मार हिम्मत न बैठो हार
दिल्ली में बैठी है अपनी ही सरकार
उम्मीद रखो रखो उम्मीद उम्मीद के सहारे ही चल रही है दुनिया जैसे कि अब तक चली आ रही है सच है कि दुश्वारियां बढ़ी जा रही हैं
बीवी से कहो फिर-फिर अद्भुत है थोड़े में गुजारे का मंत्र हो-हल्ला से क्या फायदा समझो और समझाओ कवि बात नहीं बने तो कहीं खिसक जाओ कवि
दफ्तर भागो जल्दी देर से थोड़ा लौटो बच्चों के बकझक को चुपचाप सह जाओ कवि फिर भी नहीं बने बात तो नेताओं के गुर को तुम भी अमल में लाओ उन्हें वादों से बहलाओ
चलो कवि बाजार झोला उठाओ।
खाप पंचायतों की कई तरह की उलजलूल फतवों के िखलाफ हम सभी मुखर रहे हैं । लेिकन उसने आज बच्चियों की गर्भ में हत्या के विरोध में जो फैसला िकया है उसकी तारीफ की जानी चाहिए। भ्रूण हत्या पर रोक हर हाल में रोकी जानी चाहिए। इसी तरह महिलाओं को पूरी आजादी के साथ जीने का हक भी मिलना चाहिए। उसके पढ़ने-लिखने, पहनन-ओढ़ने, बाजार जाने, नौकरी करने और जीवन साथी चुनने पर उसकी ही मर्जी चलने देनी चाहिए।